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मेरे दूर चले आने के कारण अपने साथी से / कालिदास
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तां जानीथा: परिमितकथां जीवितं मे द्वितीयं
दूरीभूते मयि सहचरे चक्रवाकीमवैकाम्।
गाढोत्कण्ठां गुरुषु दिवसेष्वेषु गच्छन्सु बालां
जातां मन्ये शिशिरमथितां पद्मिनीं वान्यरूपाम्।।
मेरे दूर चले आने के कारण अपने साथी से
बिछड़ी हुई उस प्रियतमा को तुम मेरा दूसरा
प्राण ही समझो। मुझे लगता है कि विरह
की गाढ़ी वेदना से सताई हुई वह बाला
वियोग के कारण बोझल बने इन दिनों में
कुछ ऐसी हो गई होगी जैसे पाले की मारी
कमलिनी और तरह की हो जाती है।