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मेरे पर्वत / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
तूने मुझे अपने आगोश में क्यों पैदा किया
यानि तू यहाँ क्यों था और मैं यहाँ क्योंकर आया
तू पहले था
मैं बाद में आया यह कसूर मेरा
फिर भी क्यों खिलाया खेलाया अपने आँगन में
बहा दिया होता नही में
या फेंक दिया होता समुद्र किनारे।
मैं पला बढ़ा तेरी गोद में
तेरा घर
मेरे लिए कोख
वृक्ष लताएँ पालना
हवा ने सुनाई लोरी।
तूने दिया मुझे जीवन
यह सच है
तूने पाला पोसा
सुनी मेरी किलकारी
रोना भी सुना
महसूसी मेरे पैरों की गति
तो रुकना भी सुना।
पर्वत! देना मुझे अपना-सा धैर्य
सिखाना अपना धर्म
चमकें चाहे लाख बिजलियाँ
अपनी सी दमक देना
मैं जाऊँ चाहे मैदान
चाहे समंदर किनारे
अपना सा घर देना
देना मुझे गुफा सा गाम्भीर्य
चोटी सी ऊँचाई देना
चट्टान सा बल देना
मुझे कस्तूरी से भर देना।