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मेरे पास नहीं, तेरे पास नहीं / ओसिप मंदेलश्ताम
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मेरे पास नहीं, तेरे पास नहीं, उनके पास है
अपने इस समाज की ताकत आज उनके हाथ है
उनका हुक्का भरते हैं मुख़बिर और चुगलख़ोर
डण्डों से और कूप-खोदकों से है उनका ज़ोर
लोग खोलकर अपने नाज़ुक सीपी जैसे होंठ
खींच लेते हैं मन के भीतर उनकी भारी चोट
लहरदार कुंडलियों जैसी सब बातें उनकी, भैया
और वादे सब बेहद मोहक, पर राहें भूलभुलैया
रचेगा तू रक्त से अपने यदि उनका आनन्द औ' सुख
अपने तन पर झेलेगा उनका ज्वार-भाटे-सा दुख
तब तू ही उनका वारिस होगा, जिनका राज्य विशाल
नाम नहीं है उनका कुछ, पर मज़बूत है कंकाल
(रचनाकाल : 6 दिसम्बर, 1936, वरोनिझ)