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मेरे पिता / सुभाष राय
Kavita Kosh से
मेरे पिता ने मुझे सीखने दिया
आन्धी, पानी और आग से
कभी डाँटा नहीं, डराया नहीं
मैं हर आहट का पीछा करता
हर रोशनी को पकड़ना चाहता
उन्होंने रोका नहीं मुझे कभी
उन्होंने कुछ नया खोजते-खोजते
खो जाने दिया मुझे कई बार
और बाद में तलाशते रहे
पेड़ों पर, पहाड़ों पर, नदियों में
वे मेरे साथ खेलते हुए बच्चा हो जाते
मेरे हमउम्र, कई बार मुझसे छोटे
उन्होंने अनगिन अर्थ दिए मुझे
उनमें से कइयों के लिए तो
आज तक नहीं मिला कोई शब्द
मेरे पिता ने अपने लिए
कभी कुछ नहीं कहा
दुनिया के लिए बार-बार कहा ।