भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे पूर्वजो / बुद्ध / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मरे पूर्वजो, तुमने मुझे नहीं दिया यह ज्ञान
कि मेरे अन्दर तड़ता है तुम्हारा प्रेम
मेरी ही बाँहों से तुम थामना चाहते हो
काँपती प्रेमिकाओं के शरीर
मुझ में से ही भटकते हो तुम चिरन्तन
मेरी ही रातों में देखते हो सपने अपूर्ण

जीवन में मेरे ही उमड़ती हैं लहरें तुम्हारे समुद्रों की
मुझ में स्तब्ध खड़े हैं तुम्हारे पहाड़
आँखों में बहते हैं तुम्हारे आँसू
पवित्र प्रेम जो मेरा है तुम ही हो उसे जी रहे
भीड़ में मेरा अकेलापन तुम्हारा है
मैं जो बाँटता हूँ ख़ुद को
तुम्हीं को बाँटता हूँ
जो पाता हूँ बदले में
तुम ही पाते हो मुझ में से।