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मेरे पैर नही भीगे… देखो तो / वंदना गुप्ता

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मेरे पैर नही भीगे
देखो तो
उतरे थे हम दोनों ही
पानी के अथाह सागर में
सुनोजानते हो ऐसा क्यों हुआ?

नहीं ना नहीं जान सकते तुम
क्योंकि
तुम्हें मिला मोहब्बत का अथाह सागर
तुम जो डूबे तो
आज तक नहीं उभरे
देखो कैसे अठखेलियाँ कर रही हैं
तुम्हारी ज़ुल्फ़ें
कैसे आँखों मे तुम्हारी
वक्त ठहर गया है
कैसे बिना नशा किये भी
तुम लडखडा रहे हो
मोहब्बत की सुरा पीकर
और देखोइधर मुझे
उतरे तो दोनों साथ ही थे
उस अथाह पानी के सागर मे
मगर मुझे मिली रेत की दलदल
जिसमें धंसती तो गयी
मगर बाहर ना आ सकी
जो अपने पैरों पर मोहब्बत का आलता लगा पाती
और कह पाती
देखो मेरे पैर भी गीले हैं भीगना जानते हैं
हर पायल मे झंकार का होना जरूरी तो नहीं
सिमटने के लिये अन्तस का खोल ही काफ़ी है
सुना है
नक्काशीदार पाँव का चलन फिर से शुरु हो गया है
शायद तभी
मेरे पैर नही भीगे देखो तो!