भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे प्रभो / कैलाश पण्डा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अये, मेरे प्रभो
मैं आया था
श्वास चलती देह को छोड़
तुम्हारे मंदिर में
किसी ने देख लिया
मैं अनमना सा
निकल गया तुरन्त
क्योंकि
मेरी देह से सम्बन्ध जो था
गहराई में जाऊंगा
तब आऊंगा पुनः
बतियाऊंगा देर-देर तक
उससे पहले
आत्मा को जगाऊंगा
तभी तो कर पाऊंगा प्रयास
देर सबेर मेरी सारी विधियां
करेगी मेरा स्वागत
आनन्द की सीढ़ी चढ़
पहले पाठशाला जाऊंगा।