भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे प्राण आज कहते हैं / अज्ञेय
Kavita Kosh से
मेरे प्राण आज कहते हैं वह प्राचीन, अकथ्य कथा,
जिस में व्यक्त हुई थी प्रथम पुरुष की प्रणय-व्यथा!
फिर भी पर वह चिर-नूतन हो सकती नहीं पुरानी,
जब तक तुझ में जीवन है मुझ में उस का आकर्षण,
जब तक तू रूप-शिखा-सी मैं विकल आत्म-आवेदन;
तेरी आँखों में रस है मेरी आँखों में पानी!
जब तक मानव मानव है वह आदिम एक कहानी;
प्रणय कथा यह प्रथम पुरुष से भी प्राचीन
तब, जब सफल-समापन में हो जावे वह चिर-लीन!
लाहौर किला, 26 मार्च, 1934