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मेरे प्रीतम कभी तुम सामने आओ तो सही / रविकांत अनमोल

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मेरे प्रीतम कभी तुम सामने आओ तो सही
मेरी आँखों की कभी प्यास बुझाओ तो सही

तेरे दीदार की ख़्वाहिश में जिए जाता हूं
कोई जलवा मिरे सरताज दिखाओ तो सही

मैं जो चलता हूं तो चलता हूं तुम्हारी जानिब
दो क़दम तुम मिरी जानिब कभी आओ तो सही

मेरे ख़ाबों में हो तुम मेरे ख़्यालों में हो
मेरी नज़रों के कभी सामने आओ तो सही

भूलता ख़ुद को चला जाऊं मैं जिसको सुनकर
बांसुरी की कभी वो तान सुनाओ तो सही

तुम जो पारस हो तो फिर इतना करम भी कर दो
हाँ मुझे छू के मिरे भाग जगाओ तो सही

गीत तेरे ही मिलन के हूं सुनाता कब से
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाओ तो सही

दीद को नैन हों बेचैन तड़पता दिल हो
याद में उसकी कभी अश्क बहाओ तो सही

शाम इक पल में चले आएंगे द्वारे तेरे
पी के मीरा की तरह ज़ह्‌र दिखाओ तो सही

बिन तिरे जी न सकूं मैं कभी मेरे प्रीतम
ऐसी दीवानगी इस दिल में जगाओ तो सही

ये जो नफ़रत की है आंधी अभी थम जाएगी
प्यार के दीप तुम अनमोल जलाओ तो सही