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मेरे बचे रंग / अरुण श्री
Kavita Kosh से
मेरे बेरंग दिनों में एक दिन -
सँकरी गली से शर्माते हुए गुज़रा था गाँव से लौटा लाल फूल।
मैंने उसे छूना नहीं चाहा कभी, चाहा कि लाल हो जाऊँ बस।
खैर.........................,
रंगीन चाहतों के बदरंग हो जाने की कहानी फिर किसी रोज।
आज तुम्हारी नीली चुनरी से कुछ कम नीला है मेरा आकाश।
अबकी बारिश में शायद बह गए हों कुछ रंग मेरी आँखों से।
तुम्हारा रंग यूँ ही सजा रहे तुम्हारे माथे पर,
मैं अपने बचे रंग भी तुम्हें सौंपता हूँ सखी, तुम्हें मुबारक हो।