भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे भाग्य पटल पर अंकित / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
मेरे भाग्य पटल पर अंकित
अब किसने संताप और हैं?
वृद्धा हुई कल्पना सुख की
रक्त बना आंखांे कापानी,
मुझ पर यह आरोप कि
मैंने संघर्षों से हार न मानी,
क्योंकि अभी मेरी वीणा में
जीवित स्वर आलाप और हैं।
मेरे भाग्य पटल पर...
मैंने सोचा था जीवन में
सुख का नव-संसार बसाना,
पर दूभर हो रहा आज तो
सुख से दुख के दिवस बिताना,
मेरी करुणा के करने को
कितने पश्चाताप और हैं?
मेरे भाग्य पटल पर...
अपने लिए कभी मेरा कवि
कर न सका गुणगान किसी का,
यह मेरा दुर्भाग्य कि अब तक
ले न सका वरदान किसी का,
जो मुझ को वरदान बन गये
वे पुनीत अभिशाप और हैं।
मेरे भाग्य पटल पर...