भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे भीतर चलती है एक गुफ़्तगू / सुरजीत पातर / योजना रावत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे भीतर चलती है एक गुफ़्तगू
जहाँ लफ्ज़ों में ढलता है मेरा लहू
जहाँ मेरी बहस है मेरे साथ ही
जहाँ वारिस के पुरखे खड़े रूबरू

मेरे भीतर आवाज़ें तो हैं बेपनाह
पर माथे पे मेरी अक्ल का तानाशाह
सब आवाज़ें सुनूँ, कुछ चुनूँ, फिर बुनूँ
फिर बयान अपना कोई जारी करूँ

मेरे भीतर चलती है एक गुफ़्तगू
जहाँ लफ्ज़ों में ढलता है मेरा लहू

पंजाबी से अनुवाद : योजना रावत