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मेरे भीतर वृक्ष / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / ओक्ताविओ पाज़

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मेरे मस्तिष्क के भीतर
उगा एक वृक्ष।
उगा एक वृक्ष भीतर।

इसकी जड़ें हैं नसें,
इसकी शाखाएँ तंत्रिकाएँ,
इसके उलझे पत्ते हैं विचार।
आपकी नज़र लगा देती है इसमें आग,
और इसकी छाया के फल हैं
रक्तरंगी संतरे
और ज्वालरंगी अनार।

        दिन उगता है

रात की देह में।
मस्तिष्क के भीतर
वह वृक्ष बोलता है —

        क़रीब आओ

क्या आप इसे सुन सकते हैं?

अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’