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मेरे भेजे हुए संदेसे / राकेश खंडेलवाल

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तुमने कहा न तुम तक पहुँचे मेरे भेजे हुए संदेसे
इसीलिये अबकी भेजा है मैंने पंजीकरण करा कर
बरखा की बूँदों में अक्षर पिरो पिरो कर पत्र लिखा है
कहा जलद से तुम्हें सुनाये द्वार तुम्हारे जाकर गा कर

अनजाने हरकारों से ही भेजे थे सन्देसे अब तक
सोचा तुम तक पहुँचायेंगे द्वार तुम्हारे देकर दस्तक
तुम्हें न मिले न ही वापिस लौटा कर वे मुझ तक लाये
और तुम्हारे सिवा नैन की भाषा कोई पढ़ न पाये

अम्बर के कागज़ पर तारे ले लेकरके शब्द रचे हैं
और निशा से कहा चितेरे पलक तुम्हारी स्वप्न सजाकर

मेघदूत की परिपाटी को मैने फिर जीवंत किया है
सावन की हर इक बदली से इक नूतन अनुबन्ध किया है
सन्देशों के समीकरण का पूरा है अनुपात बनाया
जाँच तोल कर माप नाप कर फिर सन्देसा तुम्हें पठाया

ॠतुगन्धी समीर के अधरों से चुम्बन ले छाप लगाई
ताकि न लाये आवारा सी कोई हवा उसको लौटाकर

गौरेय्या के पंख डायरी में जो तुमने संजो रखे हैं
उन पर मैने लिख कर भेजा था संदेसा नाम तुम्हारे
चंदन कलम डुबो गंधों में लिखीं शहद सी जो मनुहारें
उनको मलयज दुहराती है अँगनाई में साँझ सकारे

मेरे संदेशों को रूपसि, नित्य भोर की प्रथम रश्मि के
साथ सुनायेगा तुमको, यह आश्वासन दे गया दिवाकर