भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे मन की बात / मोहम्मद फहीम
Kavita Kosh से
आखिर क्यों न सुनता कोई,
मेरे मन की बात!
बड़ी-बड़ी बातें न जानँू,
नन्हा-सा है मन।
मेरे जैसा नन्हा, मेरे-
सपनों का आँगन।
नहीं सजाने देता कोई,
सपनों की बारात!
पढ़ने बैठँू तो दादा जी,
कहते ला दे पान।
दीदी कहती, जा रे मुन्ना,
ला दे ये सामान।
नन्हा हँू, कुछ कह न पाता,
खाता सबसे मात!
डाँट पिलातीं मम्मी, भैया-
रौब जमाते हैं,
पापा कहते पढ़ो, खेल पर-
रोक लगाते हैं।
हुक्म चलाते सभी मुझी पर,
दिन हो चाहे रात!