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मेरे महबूब कभी मिलने मिलाने आजा / सलीम रज़ा रीवा
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मेरे महबूब कभी मिलने मिलाने आजा
मेरी सोई हुई तक़दीर जगाने आजा
तेरी आमद को समझ लुगा मुक़द्दर अपना
रूह बनके मेरी धड़कन मे समाने आजा
मैं तेरे प्यार की खुश्बू से महक जाऊगा
गुलशने दिल को मुहब्बत से सजाने आजा
तेरी उम्मीद लिए बैठे हैं ज़माने से
कर के वादा जो गये थे वो निभाने आजा
बिन तेरे सूना है ख़्वाबो का ख़्यालो का महल
ऐसी वीरानगी में फूल सजाने आजा
तेरी हर एक अदा जान से प्यारी है मुझे
तू हंसाने न सही मुझको सताने आजा
अब तड़प दिल की नही और सही जाती है
प्यार की कोई ग़ज़ल मुझको सुनाने आजा