मेरे युवा-आम में नया बौर आया है / गिरिजाकुमार माथुर
मेरे युवा-आम में नया बौर आया है
ख़ुशबू बहुत है क्योंकि तुमने लगाया है
आएगी फूल-हवा अलबेली मानिनी
छाएगी कसी-कसी अँबियों की चाँदनी
चमकीले, मँजे अंग चेहरा हँसता मयंक
खनकदार स्वर में तेज गमक-ताल फागुनी
मेरा जिस्म फिर से नया रूप धर आया है
ताज़गी बहुत है क्योंकि तुमने सजाया है।
अन्धी थी दुनिया या मिट्टी-भर अन्धकार
उम्र हो गई थी एक लगातार इन्तज़ार
जीना आसान हुआ तुमने जब दिया प्यार
हो गया उजेला-सा रोओं के आर-पार
एक दीप ने दूसरे को चमकाया है
रौशनी के लिए दीप तुमने जलाया है
कम न हुई, मरती रही केसर हर साँस से
हार गया वक़्त मन की सतरंगी आँच से
कामनाएँ जीतीं जरा-मरण-विनाश से
मिल गया हरेक सत्य प्यार की तलाश से
थोड़े ही में मैंने सब कुछ भर पाया है
तुम पर वसन्त क्योंकि वैसा ही छाया है