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मेरे लिए तुम / विमल कुमार
Kavita Kosh से
तुम जब समुद्र से मिलना
तो मेरे लिए एक लहर ले आना
मिलना तुम जब कभी आसमान से
तो एक टुकडा बादल ही मेरे लिए ले ज़रूर ले आना
किसी शाम को फूलों से मिलकर
अपने बालों में उनकी ख़ुशबू मेरे लिए रख लेना
घुटता जा रहा है अब दम इस तरह शहर में
एक ताज़ी हवा का झोंका मेरे लिए ले आना
सोना जब तुम गहरी नींद में
तो एक सपना भी देख लेना चीज़ों को बदलने का
देखना जब चाँद को रात में चमकते हुए
उसका एक अक़्स आँखों में क़ैद कर लेना
सोचता हूँ तुम आख़िर क्या-क्या ले आओगी
सब्ज़ी और राशन के साथ उस फटे हुए झोले में .....
ज़िन्दगी भर मैं उलझा रहा इस कदर
एक चराग भी ख़रीद कर नहीं ला सका
तुम्हारे लिए इस अँधेरे में उजाले के लिए