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मेरे लिए भी कोई / लाल्टू
Kavita Kosh से
मेरे लिए भी कोई सोचता है
अंधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है । दबी हुई मुस्कान
जो दिन भर उसे दिगंत तक फैलाए हुए थी
उस वक़्त बहुत दब गई है।
अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है।
उसके खयालों में मेरी कविताएँ हैं । सीमाएँ पार
करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान।
वह मेरी हर कविता की शुरुआत।
वह कश्मीर के बच्चों की उदासी।
वह मेरा बसंत, मेरा नवगीत,
वह मुर्झाए पौधों के फिर से खिलने-सी।