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मेरे वजूद में पिन्हा है जिंदगी बन कर / रंजना वर्मा

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मेरे वजूद में पिन्हा है जिंदगी बन कर
दिल में रहता है हमेशा मेरी खुशी बन कर

उस ने देखा भी यों अहसान किया हो गोया
मिला पैगामे मुहब्बत भी बेरुखी बन कर

ख़्वाबों को छीन के जज्बातों को जख़्मी कर के
बेरुखी उस की तो आती है बन्दगी बन कर

उस का रुतबा कभी सूरज से नहीं कम होगा
मेरी आँखों में जो रहता है रौशनी बन कर

भूलना चाहते हैं पर न भुला पायें उसे
ज़हन में याद समायी है सौगुनी बन कर

फ़रेबयाफ्ता दुनियाँ का चलन है यारो
कत्ल रहता है सुर्खियों में ख़ुदकुशी बन कर

यूँ तो गुज़री है जिंदगी भरी मसर्रत से
दर्द दिल मे है रहा सिर्फ़ आशिक़ी बन कर