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मेरे वतन की ऐ हवा, आएगी / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
रे वतन की ऐ हवा, आएगी कब ये तो बता
चंदन-सी लेकर खुशबू आ, आएगी कब ये तो बता
करती नहीं कुछ भी असर, हर इक दवा है बेअसर
छूकर उन्हें देने शिफ़ा, आएगी कब ये तो बता
आँखों में हैं सपने जगे, ऐ शम्अ, तू रोशन रहे
दिल में जलाने इक दिया, आएगी कब ये तो बता
कल-कल बहे नदिया-सी तू, फिर भी रही है तिश्नगी
गागर से अपनी जल पिला, आएगी कब ये तो बता
चुनरी दबा होठों तले, तेरे अधर हंसते रहे
ऐ शोख़-चंचल-सी सबा, आएगी कब ये तो बता
‘देवी’ के दिल में जो बसी, साँसों में वो रच बस गई
तुझको है उसका वास्ता, आएगी कब ये तो बता