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मेरे वृक्ष सूख न पाएँ / कविता पनिया

मेरे वृक्ष सूख न पाए
प्रतिदिन जल उलीचकर
वृक्षों के मूल सींचकर
तरु के घने - घने साए हम पाए
मेरे वृक्ष सूख न पाए
डाल - डाल पर नीड़ बने हों
खगवृंदों का हो कोलाहल
नभ में उनके स्वर मडलाएं
मेरे वृक्ष सूख न पाए
जब ललकारे वर्षा आए
मोर पपीहे नाचे गाएँ
धरती ओढ़े चादर हरित
मानों खुद पर ही इतराए
मेरे वृक्ष सूख न पाए