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मेरे शब्द / नारायण सुर्वे
Kavita Kosh से
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मेरे शब्द आपको हमारी कहानी सुनाएँगे
इसी उत्सव के लिए दो आँसुओं को संभालकर रख दिया है ।
जुलूस में आएँगे कंधों पर बैठ महाद्वार से
कब से गले के नीचे घोषों को छिपाकर रख दिया है
पूछेंगे कहाँ है वह भोर की खोज करने वाला
इसलिए गीतों में जाने-पहचाने सुरों को रख दिया है ।
खिल उठेगी मेरी कविता, पगलाएगी, नाचेगी
उसे भी जीवन के मायनों को पढ़ाकर रख दिया है ।
खलिहानों, बाग़ानों से, सितारों, हवाओं से आएँगे
कहीं से भी आएँ; सारे रास्तों को खोलकर रख दिया है ।
गर्चे ख़ामोश दिखाई दिया शहर, गाँव, मेरा देश
तनी हुई मुट्ठियों के हाथों को घर-घर में रख दिया है ।
मूल मराठी से निशिकांत ठकार द्वारा अनूदित