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मेरे श्रम का मोल, तुम्हीं बतलाओ / रामगोपाल 'रुद्र'

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मेरे श्रम का मोल, तुम्हीं बतलाओ।

खनना मेरा काम, काम का भागी;
आमद जाने राम, दाम का भागी;
खनिज-शशि-गुण-मान, कहूँ मैं कैसे?
कौड़ी और छदाम, दाम का भागी;
अपने काँटे तोल, तुम्हीं बतलाओ।

यहाँ न्याय की नीति, खने सो खाए;
निरपवाद यह रीति, करे तो पाए;
खटना ही आराम, राम कहता है;
छोड़े छल की प्रीति, सधे, जो आए;
तब क्यों टालमटोल, तुम्हीं बतलाओ।

छूट गया जब गाँव, कहाँ, था तब मैं!
कहाँ मिल सकी छाँव, तपा था जब मैं?
किये शूल ही फूल, धूल ही चन्‍दन!
ऐसे पावन पाँव तजूँ क्यों अब मैं?
बनूँ बीन से ढोल? तुम्हीं बतलाओ!