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मेरे सनम मुस्कुरा न देना / मोहसिन नक़वी

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उदास तहरीर पढ़ के मेरी, मेरे सनम मुस्कुरा न देना
ये आखरी ख़त मैं लिख रहा हूँ, ख्याल करना जला न देना

गुज़र रही है तुम्हारी कैसे, बिछड़ के हम से रुला के हमको
हकीकतों को ज़रूर लिखना, अना की खातिर छुपा न देना

कोई पूछे किधर गया वो, जो तेरी महफ़िल का था सहारा
जो फुर्क़तों का सबब बने थे, किसी बशर को बता न देना

मैं मर भी जाऊ तो मुस्कुराना, एहसास-ए-गम की न चोट खाना
जो कुर्ब-ए-ग़म से निगाहें भीगें तो रुख से आँचल हटा न देना

लहू से तहरीर कर रहा हूँ, मैं अपनी सारी कहानी मोहसिन
जो फाड़ भी दो तो पास रखना, हवा में टुकड़े उड़ा न देना