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मेरे सपने मुझे लौटा दो / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

बीते हुए समय की पुस्तक में जो अब तक दबे रह गये
अगर हो सके उन ख्वाबों की वह अंजुमन मुझे लौटा दो।
                      मेरे सपन मुझे लौटा दो॥

जीवन के हर एक मोड़ पर हमने तुमको बहुत पुकारा
नगर अजनबी सूनी गलियाँ देता मुझको कौन सहारा।
सुन कर रहे अनसुनी करते तुम तो मेरी हर पुकार को
मैं आंसू में रही पिरोती जीवन की हर जीत हार को।

विजय द्वार हो गये तुम्हारे खुशियाँ सदा मुबारक तुमको
अगर हो सके तो आँसू से भीगे नयन मुझे लौटा दो।
                      मेरे सपन मुझे लौटा दो॥

सुनो समय के राजकुँवर ! अब बीत चुका है समय तुम्हारा
मैं प्रतिनिधि ठहरी जनता की सुख-दुख में कर रही गुजारा।
वह पीड़ा मेरी अपनी है जिस को सदियों रहे सँभाले
ये आँसू मेरे पंछी हैं मैंने नयन - पींजरे पाले।

तुम सुख की सौगात सहेजो तुमको कसम तुम्हारी साथी
आशा के तारों से जगमग मेरा गगन मुझे लौटा दो।
                      मेरे सपन मुझे लौटा दो॥

मेरे सपने थे सिंदूरी कैसे बने सुरमई शामें
किसने ले चुटकी भर पीड़ा बांध दिया सुख की पुड़िया में।
नहीं जानती कौन ले गया कब अधरों से हँसी चुरा कर
भूख प्यास से झोली भर दी और ले गया खुशी उठा कर।

फिर भी खड़ी रही मैं अपने पैरों पर ही शीश उठाये
कुछ मत दो पर स्वाभिमान का मेरा कफ़न मुझे लौटा दो।
                       मेरे सपन मुझे लौटा दो॥

दंश अभावों के हैं इतने रुद्ध हो गये कंठ हमारे
सूख गयीं आँखें अधरों से गुम हो गये आह के नारे
रोम रोम बिंध गया कर्ज से साँसें सब नीलाम हो गयीं
फुटपाथों पर लगी कतारें अब ये बातें आम हो गयीं।

इन से पर तुम को क्या लेना इंद्रधनुष पर उड़ने वाले
अगर हो सके एहसासों की तीखी चुभन मुझे लौटा दो।
                     मेरे सपने मुझे लौटा दो॥

भट्ठी जब अभाव की जलती भूख पेट मे खौला करती
लेकिन महंगाई आँसू से कब सुविधाएं तौला करती।
सीमा सहने की न मिटे टूटे न हिमालय की चट्टानें
आँसू - धुले मुखों पर विहँसें फिर भीगी भीगी मुस्कानें।

जो भविष्य को रहे सहेजें धधका किये निरंतर उर में
अगर हो सके तो जीवन की ऐसी अगन मुझे लौटा दो।
                     मेरे सपने मुझे लौटा दो॥