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मेरे साये / राजीव रंजन प्रसाद
Kavita Kosh से
जैसे ही आईना देखा, चौंक गया,
मेरा चेहरा कहीं नहीं था, कहीं नहीं..
सिर धुनता दीवारों पर मैं चीख उठा
खंडहर पर बैठे चमगादड़ उड़ कर भागे
डर कर मकड़ी धागे पर कुछ और चढ़ी
आँखें मिच-मिच करते उल्लू अलसाये
खिल-खिल कर के हँसी गहनतम खामोशी
कितने फैल गये देखो मेरे साये..
९.११.१९९५