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मेरे स्टूडियो की छत पर / विजेंद्र एस विज

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मेरे स्टूडियो की छत पर
एक कोने में,
तार से, बल्ब लटका है
वहां नीचे, जहाँ मैं बैठता हूँ
पढता रहता हूँ,
पेंट करता हूँ...
एक छतरी नुमा शेड भी है,
उसके ऊपर,
जिससे इसकी रोशनी बेमतलब नहीं फैलती
मेरे मुताबिक जलता रहता,
बुझता रहता है...

कई दिनों से
मैं वहां नहीं बैठा...
शेड पर 'डस्ट' काफी जम गयी है
रोशनी मध्यम हो गयी है,
और पीली पड़ गयी है
चन्द अशहार, नजर आते हैं वहां...

सोचता हूँ, साफ़ कर दूँ
या, बदल दूँ इसको
आँखों में काफी जोर पड़ता है
इसी उधेड़बुन में रहता हूँ...

आजकल, 'शेखू' मेरा बच्चा
इसे, रोज जलाता है, बुझाता है
इससे खेलता है, मुस्कुराता है
हँसता है, खुश रहता है...