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मेरे हिस्से की चिंताएँ / मदन गोपाल लढा

मुझे सवेरे उठते ही
चारपाई की दावण खींचनी है
पहली तारीख़ को अभी सतरह दिन बाक़ी है
पर बबलू की फ़ीस तो भरनी ही पड़ेगी।


पत्नी के साथ रिश्तदारी में हुई गमी पर जाना है
कल डिपो पर फिर मिलेगा केरोसीन तेल

मैंने यह भी सुना है कि
ताजमहल का रंग पीला पड़ रहा है इन दिनों
सिरहाने रखी किताब से मैंने
अभी आधी कविताएँ ही पढ़ी हैं।


मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा