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मेरे ही लिए / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
शिशिर की
मूक ठण्डी रात —
मेरे ही लिए !
सितारे सब अपरिचित
वृक्ष सोये
सामने बस एक
तम का गात —
मेरे ही लिए !
न जानें
किन अक्षम्य अभूत पापों का
कुफल ;
मधुलोक खोया
हर मनुज,
पर, मात्र मैं —
परिश्रान्त विह्नल !
यह अकेली स्तब्ध
बोझिल
हिम ठिठुरती रात —
मेरे ही लिए !