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मेरो जीवन बीत्यौ जाय, स्याम! कब सुधि लोगे / स्वामी सनातनदेव

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राग हंस-नारायणी, तीन ताल 13.7.1974
स्याम बिनु बैरिन कुंज भई।
जहाँ करीं कल-केलि अनेकन, सालहिं नई-नई॥
यह हरियाली आली! हमकों काली आजु भई।
विष बरसाय तपात निरन्तर, बहु विधि व्यथा जई॥1॥
सीत समीर पाय विरहानल बाढ़त हाय दई!
तन-मन झरसि छार भये सजनी! दूनी दाह भई॥2॥
प्रिया-प्रानधनकी कल-क्रीडा सुपनो आज भई।
उनकी सुरत तुरत तन-मनकों तापत मनहुँ तई<ref>तवा</ref>॥3॥
कहा करी विधना! यह, तेरी करुना कहाँ गई।
बूढ़ो है, बाधत बनितनकों, मानत आपु जई॥4॥
कहा काम तनु राखे सजनी! करनी बृथा भई।
अब तो यही धरनि धँसि रहिये मन अस पैज<ref>हठ</ref> लई॥5॥

शब्दार्थ
<references/>