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मेरो हर! तुमसों कहा दुराव / स्वामी सनातनदेव
Kavita Kosh से
राग भीम पलासी, तीन ताल 26.6.1974
मेरो हरि! तुमसों कहा दुराव।
फिर भी दूरी ही भासत, यह अद्भुत वन्यौ बनाव॥
तुम बिनु कहूँ न कुछ भी हों मैं - यह साँचो सद्भाव।
फिर भी क्यों भासत अपने में प्रिय! तब सहज अभाव॥1॥
समुझि न परत भेद यह, निज को निजसों का अलगाव।
यही तिहारी माया है हरि! जाको अमित प्रभाव॥2॥
बिनु तव कृपा जाय यह कैसे, जासों सकल भ्रमाव।
मायासों मायापति बिनु कहु, को करि सकै बचाव॥3॥
यासों चरन-सरन ही प्यारे! याको एक उपाव।
बिनु तब सरन सभी भटकन है-यामें कछु न छिपाव॥4॥
जो सब भूलि भजै तुमहीकों ताको जाय भ्रमाव।
निजमें ही निजको सो पावै, रहै न कोउ दुराव॥5॥