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मेला चल / मधुसूदन साहा
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चल रे मटरू मेला चल
देखभैं लोगोॅ रोॅ हलचल।
कहीं नौटंकी सरकस छै
कहीं तीर औ तरकस छै
कहीं बजावै बानर बीन
कहीं सिखावै गीत मशीन
घूमै लेॅ कठघोड़वा पर
उमड़ी पड़लै बुतरू-दल।
कहीं बजावै बेंगवा ढोल
सुगना बोलै मिठगर बोल
कहीं नगाड़ा बोलै छै
पर्दा जोकर खोलै छै
बाहर भालू नाच करै
भीतर मचलोॅ छै दंगल।
कहीं साँप फुफकारै छै
फन तुमड़ी पर मारै छै
बकरा खेल देखावेॅ छै
बकरी गाना गावेॅ छै
बस साँझ तक मेला छै
उठतै खेल तमाशा कल।