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मेले में बिछड़ा बालक हूँ / रामगोपाल 'रुद्र'

मेले में बिछड़ा बालक हूँ, बिसरा मेरा ज्ञान!
भूला-भूला मेरा ज्ञान!

कुछ ऐसा ही भूल गया है मुझको मेरा मन;
लाख पूछते लोग, एक ही उत्‍तर है रोदन!

यहाँ तमाशे में आया था, बना तमाशा हूँ!
भाप जहाँ भाषा, मैं उस करुणा की भाषा हूँ!
लोगों को हैरानी है! मैं आप यहाँ हैरान!

मुमकिन है, मेरी भी होती होगी खोज कहीं!
वरना कोई हाथ बिठा जाता क्यों रोज, यहीं?

मुझे यहाँ यों छोड़ गया है कौन, कौन जाने!
मेले में तो होता ही है! बुरा कौन माने!
मुझको भी सब समझ रहे हैं मेले का सामान!