भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेळ / सांवर दइया
Kavita Kosh से
म्हारी रगां में रगत
तेजी सूं चालण लाग्यो
म्हारो डील
तातो हुयग्यो
सांसां री रफतार
तेज
तेज
अर तेज हुयां गयी
कोसां कोनी भाग्यो म्हैं
पण तो ई
म्हैं हांफण लाग्यो !