भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेहनतकशों का कोरस / श्याम कश्यप

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिजलियाँ भरी हैं इनमें
भड़कती बिजलियाँ
ये हमारे हाथ....

अनंत गतियाँ प्रवाहित हैं इनमें
            तीव्रतम गतियाँ
ये हमारे पाँव....

मशालें जलती हैं इनमें
रेडियम की लौ
ये हमारी आँखें....

हमारे हाथ, हमारे पाँव, हमारी आँखें
बिजली की गति में गति को रोशनी में बदल रहे हैं
मस्तिष्क के परमाणुओं को तेज़ सक्रिय रश्मियों में

हम रोशनी की नदी हैं
      प्रकाश के प्रपात
      जहाँ अँधेरे के कगार घुल रहे हैं...
कितने कल-कारख़ाने इमारतें टैक्टर बन रहे हैं ।

अगर हमारे हाथ रूक जाएँ
पाँव थम जाएँ
आँखें फेर लें हम
तो बताओ किस अजायबघर में चली जाएगी
                     तुम्हारी दुनिया ?
हमें आँखें मत दिखाओ
गुर्राओ, धमकाओ नहीं मोटे सूअर
अपनी घड़ी की ओर देखो ज़माना क्या बजा रहा है !