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मेह होवै तो म्हे होवां / ओम पुरोहित ‘कागद’

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तपती चालै
बळबळती बगै
बादळां नै झूरती
आभो धरती एक करती पून!

झूंपड़ा तपांवती
गाछ सुकांवती
पाणीं बाळती
लू बणी
धोरी रो सोधती
अंतस पाणीं!

लूआं रो
फंफेड़ीज्योड़ो धोरी
आभो तकै
करै अरदास
मेह करो
मेह होवै तो
म्हे होवां!