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मैंने अपना ज़मीर बेचा है / चेतन दुबे 'अनिल'

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मैंने अपना ज़मीर बेचा है
लोचनों का भी नीर बेचा है

पीर पाने को बेच दी खुशियाँ
दिल की धड़कन औ धीर बेचा है

खुद ही मैं मुफलिसी के घर पहुँचा
मैंने आला अमीर बेचा है

अब न कुछ शेष रह गया यारो
द्रोपदी का भी चीर बेचा बेचा है

पतझरों में पली जवानी है
मैंने मन - काश्मीर बेचा है