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मैंने अपनी ज़िन्दगी, कर दी तुम्हारे नाम, सब / उर्मिल सत्यभूषण

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मैंने अपनी ज़िन्दगी, कर दी तुम्हारे नाम, सब
उम्र सारी क़ीमती, कर दी तुम्हारे नाम, सब

मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद मेरे तीरथ धाम तुम,
अपनी पूजा आरती कर, दी तुम्हरे नाम सब

पेड़ बनकर लहलहाओ, मैंने ऐसा सोच कर,
भावना की वो नदी, कर दी तुम्हरे नाम सब

ताकि इस अंधे नगर में तुम चिरागां कर सको
अपने दिल की रौशनी, कर दी तुम्हरे नाम सब

गीत लिख-लिख ढेर सारे तुमको अर्पित कर दिये
सोच, कविता, शायरी, कर दी तुम्हारे नाम सब

खाद बन, फ़सलें नई, तैयार मैं करती रही,
फूल सी खुशबू, हंसी, कर दी तुम्हारे नाम सब

सौंप कर ‘उर्मिल’ किताबे-दिल तुम्हारे हाथ में
कुछ कही, कुछ अनकही, कर दी तुम्हारे नाम सब।