मैंने एक सत्य थामा है / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
पानी पर चित्र आंकना .
वायु पर प्रहार करना.
अग्नि को थाम सकना.
पृथ्वी को बाँध सकना .
सब सम्भव है.
परन्तु यदि तुमने मूल सत्यों में से
कोई एक सत्य थामा है,
तो यह दुनिया तुम्हे जीने नहीं देगी .
थामे सत्य के थम्ब में ही तुम्हे बाँध कर
अवरोधों , आलोचनाओं मर्मान्तक पीडाओं के
उत्पीदान में तुम्हें झोक देगी .
जीवित समिधा बन कर यदि तुम जल सकते हो,
तो सत्य को थामे रहो.
जीवन यज्ञ में तुम्हारी यह दिव्य आहुति ,
आकाश में "सत्यमेव जयते "के जय घोष में,
अग्नि में "अग्नि मीडे पुरोहितं " उद्घोष में,
पृथ्वी में सहन शीलता के वेश में,
वायु में प्राण शक्ति के परिवेश में,
जल में जीवन के जीवोन्मेष में,
फिर ब्रह्माण्ड से, हिरण्यगर्भ की नाभि से,
सत्यान्वेषी का थामा हुआ सत्य ,
गायत्री बन कर,
ब्रह्माण्ड में ही लीन हो जाए.
आत्मा परमात्मा हो जाए.
लौ से लौ एकाकार हो जाए.
साकार निराकार हो जाए.