एक इंसान की यात्रा, उसके पड़ाव
उसके उठने और गिरने को जाना
उसकी ताकत और कमज़ोरी को देखा
भोगा शानदार कपड़ों और भोजन को
भूखे मरने और लड़ते रहने को सहा
मैं अगर अपनी कविता से गिराया गया हूं
और संभला हूं तो
वही किया जो मुझे संघर्ष में मिला
मैंने कभी परवाह नहीं की युद्धों की
क्योंकि मैं जानता था
लड़ना ख़ुद से होता है
ना ही मैं दल चाहता हूं
ना सभाएं, भूखण्ड, नारे,
आज़ादी ना हथियार
मैंने लिखा.....बस
मैं चाहता था शांति
मैं चाहता था दरों से निकलती चींटियां
जो आवाज़ों को तोडे़ बिना
पार करती हैं मुझे
जुटी अपने कामों में
मैं पार कर जाता वे गलियां
जो विरोधों से भरी पड़ी थीं
मैंने कभी दिल में बसने के लिए नहीं लिखा
उसके लिए थे दूसरी तरह के लोग
मैंने हर आपत्ति को दर्ज़ किया
मैं और क़रीब पंहुच सका
सच, निष्पक्षता और जीवन के
मैंने लोगों को चेताने या जगाने के लिए नहीं कहा
वह सब तो उनके भीतर था
अगर नहीं था तो सिर्फ़ यक़ीन
जो मुझे मिला तुम्हारी असहमतियों में