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मैंने चाँद को दिखाते हुए पानी पिया / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
चाँद पूरा था
उमस पृथ्वी की देह से होकर पहुँच रही थी उस तक
वह काले बादलों के बीच से सभ्यता की तरह गुज़र रहाथा
या कहें कि
काले बादल काल की तरह उसे पछाड़ते हुए गुज़र रहे थे
मुझे प्यास लगी
ख़ूब गहरी
प्यास का माप नहीं था कोई आकार नहीं
जिस बर्तन में पानी था मैंने उसे प्रेम से देखा
और चाँद को दिखाते हुए खू़ब पानी पिया
चाँद को कितनी राहत मिली पृथ्वी की देह से होकर
उमस पहुँच रही थी उस तक