मैंने जब तक उसे न देखा था / रविकांत अनमोल
मैंने जब तक उसे न देखा था
दिल में बस जाएगा न सोचा था
नींद जब तक उड़ी न थी मेरी
रात के हुस्न को न जाना था
पहले ये बात तो न थी इसमें
यूँ तो पहले भी दिल धड़कता था
ये जहाँ कुछ नया सा लगता है
अब है बेहतर कि पहले अच्छा था ?
तुम को पा कर हुआ है ये अहसास
तुम से पहले मैं कितना तन्हा था
बिजलियाँ सी छुपी थीं बादल में
शोख़ियों पर हया का पहरा था
उसकी ज़ुल्फ़ें घटाओं जैसी थीं
उनमें इक चाँद जैसा चिह्रा था
हुस्न ऐसा कहीं नहीं देखा
वो मिरे ख़ाब से भी प्यारा था