भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैंने जब भी ठोकर खाई / रश्मि विभा त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह तुम्हारा हौसला है
जो मेरे संग पल- पल चला है
मैंने जब भी ठोकर खाई
तुमको आवाज लगाई
मेरा हाथ थामा दौड़करके, तुम्हारा भला है
ये तुम्हारा हौसला है...
जब अँधेरी रात आई
तुमने शमाँ जलाई
सुबह ने दस्तक दी, उम्मीद का सूरज निकला है
ये तुम्हारा हौसला है...
आँधी ने मुझे झिंझोड़ा
नन्हे ख़्वाबों ने दम तोड़ा
फिर भी जज़्बे का जुगनूँ आँखों में पला है
ये तुम्हारा हौसला है...
मेरी हिफाज़त के लिए माँगी दुआ
मुझे तभी तो कुछ नहीं हुआ
तुम्हारी ही बदौलत मुझसे कोसों दूर हर बला है
ये तुम्हारा हौसला है...
बरतते हो ये एहतियात
मैं महफ़ूज रहूँ दिन- रात
मेरे साथ होने वाला हर एक हादसा टला है
ये तुम्हारा हौसला है...
मेरी लौ हो, मेरी आग हो
मेरी ख़्वाहिशों का चिराग हो
सुनहरी शाम का आलम रहा, जब भी दिन ढला है
ये तुम्हारा हौसला है...
टूट न पाई साँसों की माला
कदम- कदम पे तुमने सँभाला
दुनिया ने दगा किया या जब तकदीर ने छला है
ये तुम्हारा हौसला है...
किसी न किसी बहाने
मेरे होठों पे रख दिए तराने
मेरा मायूस रहना तुमको बहुत खला है
ये तुम्हारा हौसला है...
तुम मेरे दुख से दुखी हुए
यही मनाया, मुझको गम न छुए
तुम्हारे प्यार के बारे में क्या कहूँ, मेरा रुँधा गला है
ये तुम्हारा हौसला है...
मेरी आँखों का तारा
बनकरके मेरा सहारा
तुमने ही आकर मेरे हर बुरे हालात को बदला है
ये तुम्हारा हौसला है...
अपनी खुशी और के नाम कर देना
दामन में उसके मुस्कानें भर देना
सिर्फ तुम्हारे पास ही ओ मेरे मनमीत ऐसी कला है
ये तुम्हारा हौसला है
जो मेरे संग पल- पल चला है।