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मैंने ज़बान खोली तो तूफाँ मचल पड़े / शैलेश ज़ैदी

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मैंने ज़बान खोली तो तूफाँ मचल पड़े।
मैं चुप रहा तो आपके आंसू निकल पड़े।।

शब्दों में ऐसा क्या था कि सूई सी चुभ गयी।
आया था क्या प्रसंग कि वो यों उबल पड़े।।

थे होश में तो झूठ के पुल बांधते रहे।
पर जब नशा चढा तो हकीकत उगल पड़े।।

तुमने चुना है अपने लिए ख़ुद ये रास्ता।
देखो न ज़िंदगी में कोई अब खलल पड़े।।

होती हैं आंसुओं में तपिश आग की तरह।
डरता हूँ मैं कि आपका दामन न जल पड़े।।

कर ली तबाह आपने ख़ुद अपनी ज़िंदगी।
कितने ही वरना राह में गिरकर संभल पड़े।।