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मैंने तुझको रोम-रोम से सौ-सौ बार पुकारा / कांतिमोहन 'सोज़'
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मैंने तुझको रोम-रोम से सौ-सौ बार पुकारा ।
तुझको रूककर देना मेरा साथ हुआ न गवारा।।
तुझको था ये इल्म कि तू बिन मेरे ख़ुश रह लेगा
मुझको था मालूम कि तुझबिन मेरा नहीं गुज़ारा ।
सूखा पत्ता टूटा तारा और कमल मुरझाया
मैं नादां था नियति नटी का समझा नहीं इशारा ।
अब तो यूँ लगता है जो होना है हो जाने दो
कोहरे में डूबा रहने दो मेरा भाग्य-सितारा ।
बस छोटा सा एक गिला है तुझसे कर लेने दे
तूने सोचा नहीं कि तुझबिन मेरा कौन सहारा ।
तू क्या बिछड़ा बिछड़ गए जीने के अरमां सारे
रंजो-आलम का अब मेरे जीवन पर हुआ इजारा ।
प्यासी धरती चीख़ रही थी कहकर मेघा-मेघा
फिर भी तुझको नज़र न आया सोज़ बिरह का मारा ।।
1-2-2016