Last modified on 30 नवम्बर 2018, at 22:55

मैंने तुम्हें चूमा ... / निकलाय रुब्त्सोफ़ / अनिल जनविजय

आँसू बह रहे थे जब मैंने तुम्हें चूमा
पर देख नहीं पाईं तुम मेरे आँसू
क्योंकि रात वह
अन्धेरी और गीली थी, पतझर की
ज़मीन पर गिर रही थीं पत्तियाँ
समुद्र में तूफ़ान का ज़ोर था
पत्तियाँ वे तुम्हें मिल गईं
मेरे हिस्से आया तूफ़ान

भयानक, डरावने वज्रघोष-सी
चारों ओर गरज रही थीं लहरें
कभी जब थोड़ा शान्त होता था समुद्र
अन्धेरे में रोशनी की किरण दिखाई देती थी

सोचा मैंने
शायद तू रोज़ आती होगी समुद्र किनारे
मेरी प्रतीक्षा में
और मेरे भीतर उग आया सूरज

तूफ़ानी समुद्र की कराहटें
मेरे उदास मन को ले जाएँ तुझ तक
और अन्धेरे में उगता सूरज
मेरी आशा और विश्वास तुझ तक पहुँचाए

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय