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मैंने नहीं कल ने बुलाया है! / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
मैंने नहीं कल ने बुलाया है
खामोशियों की छतें,
आबनूसी किवाड़ें घरों पर
आदमी आदमी में दीवार है
तुम्हें छेणियाँ लेकर बुलाया है
मैंने नहीं कल ने बुलाया है
सीटियों से
साँस भरकर भागते
बाजार-मिलों दफ्तरों को
रात के मुर्दे
देखती ठंडी पुतलियाँ
आदमी अजनबी
आदमी के लिए
तुम्हें मन खोलकर मिलने बुलाया है
मैंने नहीं कल ने बुलाया है
बल्ब की रोशनी
शेड में बन्द है
सिर्फ परछाईं उतरती है
बड़े फुटपाथ पर
जिन्दगी की जिल्द के
ऐसे सफे तो पढ़ लिये
तुम्हें अगला सफा पढ़ने बुलाया है
मैंने नहीं कल ने बुलाया है