मैंने मार्क्स को नहीं पढ़ा / विनय कुमार
कात्यायनी के लिए जो कहती हैं कि आलोकधन्वा ने मार्क्सवाद ठीक से नहीं पढ़ा
मैंने मार्क्स को नहीं पढ़ा
नहीं जानता कि मार्क्सवाद क्या है
मगर कविताएँ लिखता हूँ
ग़लत करता हूँ क्या
कहाँ जाकर दिखाऊँ
अपनी कविताएँ
क्रेमलिन कहाँ है
कहाँ है बीजिंग
उसका रास्ता नागपुर होकर जाता है क्या
कविता के लिए क्यों जरूरी हैं मार्क्स
कोई समझाए मुझे
मैं जहानाबादी गँवार नहीं जानता
कितने मार्क्स मिलेंगे मेरी कविताओं को
अगर वे लिखी गईं मार्क्सवाद ठीक से पढ़े बगैर
क्या मैं फेल हो जाऊँगा
हे मार्क्सवाद के पारंगत
तुम्हें कितने अंक मिले हैं
किस पत्रिका में छपती है मेरिट-लिस्ट
जानना चाहता हूँ
सुना है मार्क्स के कई पाठ हैं
जैसे पार्टियाँ और उनके दफ़्तर
वह उस्ताद कहाँ बैठता है
जिसे जाकर दिखाऊँ
मैं कसौटियों से डरता हूँ
मेरा लिखा खरा तो क्या
सोना भी नहीं
क्या करें वे
जो मेरी तरह मिट्टी की कविताएँ लिखते हैं
अगर अनामिका सोहर लिखे
तो वह किस वाद की कविता कही जाएगी
काम क्या है
मार्क्स क्या कहते हैं
काम के बारे में
कौन-सा वाद निष्काम है
उर्वशी क्यों पतन का काव्य है
क्या उर्वशी का बलात्कार हुआ
वे शब्द जो मेरे जन्म के पहले सृजित हुए
क्या उन्हें जानना
और उनसे एक महल जैसा बड़ा मकान बनाना
क्या विलासिता है केवल
क्या कोई समझा सकता है
कि रूस की सड़के क्यों इतनी चौड़ी हैं
और मास्को क्यों इतना ख़ूबसूरत
क्या रूस का वैभव मार्क्सवादी है
आलोचना क्या है
वह हस्तिनापुर में ही क्यों रहती है
वह चश्मा क्यों पहनती है
क्या वह हमेशा होश में रहती है
कि कभी कवियों की तरह
शराब भी पीती है
किसी को कहते नहीं सुना आज तक
मुक्तिबोध् जी शमशेर जी
अज्ञेय जी भी नहीं
मगर आलोचक के नाम के साथ जी क्यों लगाया जाता है
मैं प्रलेस में नहीं हूँ
न जलेस में
न जसम में
न संघी हूं न समाजवादी
तो क्या मुझे पारपत्र नहीं मिलेगा
क्या मैं उस पंगत में नहीं बैठ सकता
जहाँ बैठते हैं
आलोधन्वा, अरुण कमल और मदन कश्यप
जिनके करीब बैठकर लगता है
मैं अपने भाइयों के बीच में हूँ
यह कैसी गोष्ठी है
जहाँ सिर्फ़ पाठक जा सकते हैं
यह कैसा तमाम है
जिसमें अनपढ़ आम के लिए
कोई जगह नहीं
द्वार पण्डितों से घिरा यह
कैसा प्रदेश है
वर्जित है क्या
मुकुल जी
आपने तो पढ़ा है मार्क्स को
मगर आप यहाँ क्यों हैं
क्यों नहीें मिला पारपत्र आपको
किसी ब्लैक एन्ड व्हाइट पुरस्कार के टीले पर आप क्यों नहीं हैं
मेरी बात और है
मैंने तो मुहब्बत की है
सबसे उन सबसे
जो काव्य की लय में गरजते भूँकते हैं
तुलसी की भक्ति
रहीम की नीति
रसखान की प्रीति
कुछ भी अछूत नहीं
मैं आलोकधन्वा की नींद के लिए
कुमार मुकुल की सुबह के लिए
अरुण कमल के साथ किसी भी नए इलाके में चला जाऊँगा
बगैर पारपत्र
भले नीम रोशनी में मार डाला जाऊँ
गोलियाँ सबको खींचती हैं
बन्दूकों का आकर्षण अमोघ
तभी तक जब तक जंग एक दूरस्थ सम्भावना है
कितने पाठक मार्क्सवाद के तब गए मास्को
जब लेनिन की मूर्ति ढाही जा रही थी
कहोगे हम बुतपरस्त नहीं
वाह रे द्वारपण्डित
जहाँ जीवन की असहायता और राग
वहाँ मूर्ति की कसौटी
जहाँ मूर्ति पर संकट
वहाँ जीवन के नेपथ्य में रियाजे इन्क़लाब
वह जो रस का व्याकरण था
पिंगल और छन्द का व्याकरण था
कविता के गले में पट्टा बन्धता था
और अब यह नया व्याकरण
जीवन के गले में पट्टा बाँधना चाहता है
चलिए मुकुल जी
हमलोग यहीं ठीक हैं
जीवन में भाषा में
यहीं बोलेगे बतियाएँगे
आपस में लोगों से
पार्टी पारपत्र और व्याकरण
और द्वारपण्डितों
की परवाह किए बग़ैर ।