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मैंने रात चैन से काटी/ गुलाब खंडेलवाल
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मैंने रात चैन से काटी
शब्दों में भर-भरकर सारी चिंता जग को बाँटी
सुख का दुख, बल की दुर्बलता
देख सफलता की निष्फलता
जिनको पाकर भी कर मलता
उनसे दृष्टि उचाटी
भोग त्याग का, गरिमा यश की
प्रिय थी बहुत रसिकता रस की
पार स्वरों ने पर बरबस की
जीवन की वह घाटी
मन का मोहक दर्पण तोड़ा
नित नव रूप सजाना छोड़ा
चेतन को चेतन से जोड़ा
माटी को दी माटी
मैंने रात चैन से काटी
शब्दों में भर-भरकर सारी चिंता जग को बाँटी